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Jagannath Puri Rath Yatra/जगन्नाथपुरी रथ यात्रा -उत्सव 2025

Jagannath
रथयात्रा का एक दृश्य

Jagannath Puri Rath Yatra 2025/ जगन्नाथपुरी rath Yatra भारत के ओडिशा राज्य के पुरी नगर में भगवान जगन्नाथ के मंदिर में आयोजित होने वाला एक भव्य और प्रसिद्ध धार्मिक त्योहार है। यह यात्रा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (जून–जुलाई) को मनाई जाती है।पुरी का जगन्नाथ मंदिर भारत में सबसे अधिक पूजनीय वैष्णव पूजा स्थलों में से एक है। यह सबसे पुराने हिंदू मंदिरों में से एक है जो अभी भी उपयोग में है, इसका मुख्य मंदिर दसवीं शताब्दी में चोडगंगा वंश के अनंतवर्मन द्वारा बनाया गया था।

Jagannath/भगवान जगन्नाथ कौन हैं? या रथयात्रा का महत्व…

भगवान जगन्नाथ(lord Jagannath), भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का एक रूप हैं। उनके साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी इस उत्सव में भाग लेती हैं।यह यात्रा भगवान जगन्नाथ के अपने मूल मंदिर से निकलकर, गुंडिचा मंदिर (जो उनकी मौसी का घर माना जाता है) तक जाने की परंपरा है। इस दौरान तीनों देवी-देवताओं को विशाल रथों पर विराजमान कर, लाखों श्रद्धालु खींचते हैं।


मान्यता है कि ये रथ भगवान की इच्छा के अनुसर चलता है या रुकता है। और रस्सी खींचने वाले लोग भी भगवान के आशीर्वाद से ही मिलते हैं।भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष हैं और इसका रंग लाल और पीला होता है। रथ में लगे पाहियो की संख्या 16 होती है। वही बलभद्र और सुभद्रा के रथो का नाम क्रम: तालध्वज और पद्मध्वज हैं।

Jagannath Puri rath yatra/रथ यात्रा की विशेष बातें:

यह एकमात्र ऐसा अवसर होता है जब गैर-हिन्दू भी भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर सकते हैं, क्योंकि रथ पर सवार होकर बाहर आते हैं। और सभी मंदिर के बाहर भी भगवान के दर्शन कर सकते हैं। Rath Yatra में रथ खींचना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस यात्रा के दौरान भक्त "जय जगन्नाथ!" के नारे हैं।

भारतवर्ष में भी कई जगह प्रतीकात्मक रथयात्रा निकलती है। और सभी जगह भक्तगण उसी ऊर्जा से भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचते हैं। भारत के अलावा लंदन, न्यूयॉर्क, मॉरीशस और कई देशों में भी इसकी झलक देखने को मिलती है।

जगन्नाथ रथयात्रा 2025/रथयात्रा का क्रम

भगवानों को स्नान पूर्णिमा को स्नान कराया जाता है।स्नान पूर्णिमा, जिसे देवस्नान पूर्णिमा या स्नान यात्रा भी कहा जाता है।इस बार स्नान पूर्णिमा 11 जून को मनाई गई थी। स्नान पूर्णिमा के पावन अवसर पर 108 कलशों से अभिषेक किया जाता है।अभिषेक के बाद, श्रीजगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा परंपरागत रूप से “अनवसरा” अवधि में प्रवेश करते हैं ।

पट्टाचित्र रूप में भगवान जगन्नाथ
मान्यता है कि इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बल और सुभद्रा को बुखार(fever) आ जाता है और वे 15 दिन तक आराम कर लेते हैं। इस  दौरान मंदिर के पट बंद रहते हैं और भक्तों को दर्शन नहीं मिलते हैं।भगवान को औषधीय काढ़े, फल-रस, फूलों का तेल इत्यादि से उपचार दिया जाता है।इस दौरान भक्तगण पट्टाचित्र रूप में भगवान का दर्शन करते हैं।इस पवित्र समय में हम सब भगवान के शीघ्र स्वस्थ होने की मंगल कामना करते हैं।


उसके बाद रथ यात्रा होती है। रथयात्रा जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक जाती हैं।गुंडिचा मंदिर (भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर) मैं 9 दिन तक रहते हैं। 9 दिन बाद भगवान वापस लौटते हैं, जिसे बहुदा यात्रा कहा जाता है।
इस तरह रथयात्रा का समापान होता है, और सभी भक्त भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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