परिचय
नारायण गुरु (1855 – 1928) एक महान समाज सुधारक, दार्शनिक, और आध्यात्मिक गुरु थे, जिन्होंने विशेष रूप से केरल में जातिवाद, अंधविश्वास, और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। वे सत्य, अहिंसा, समानता और आध्यात्मिक एकता के पक्षधर थे।
📜 प्रारंभिक जीवन
- जन्म: 20 अगस्त 1855, चेमन्पर (केरल) के एक पिछड़े वर्ग एझावा जाति में।
- माता-पिता: माता कुट्टी अम्मा और पिता मदन असान।
- बचपन से ही तेजस्वी, शांत स्वभाव और धार्मिक प्रवृत्ति वाले थे।
- वे संस्कृत, वेद, उपनिषद, योग और तंत्र में गहरी रुचि रखते थे।
🧘♂️ आध्यात्मिक और सामाजिक कार्य
- उन्होंने जात-पात और छुआछूत के खिलाफ कड़ा विरोध किया।
- उन्होंने कहा – “एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर, मानवता के लिए।”
- शिव मंदिर की स्थापना (1888, अरुविप्पुरम): उन्होंने एक ऐसे स्थान पर मंदिर बनवाया जहाँ पिछड़ी जातियाँ प्रवेश नहीं कर सकती थीं, यह उस समय एक क्रांतिकारी कदम था।
- उन्होंने कई मठ, विद्यालय और मंदिर स्थापित किए जहाँ सभी जातियों के लोग आ सकें।

नारायण गुरु
✍️ लेखन और विचार
- नारायण गुरु ने अद्वैत वेदांत को आधार बनाया और समाज में व्यावहारिक रूप में लागू किया।
- उन्होंने आत्मबोध, दर्शनमाला, और जीवन दर्शन जैसे ग्रंथों की रचना की।
- उनका लेखन गहराई, सरलता और सामाजिक समरसता से परिपूर्ण है।
🌟 प्रभाव और विरासत
- उन्होंने केरल में सामाजिक जागरूकता की नींव रखी।
- उनके शिष्य कुमारन आसान और अन्य लोगों ने उनके विचारों को आगे बढ़ाया।
- आज भी उन्हें “श्री नारायण गुरु” के नाम से श्रद्धा से याद किया जाता है।
🕊️ निधन
- 20 सितंबर 1928 को उनका देहांत हुआ।
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